सहरसा वालों के लिए 3 विकल्प थे। वैशाली का विस्तारीकरण, या पूरबिया को प्रतिदिन करना या कोई अन्य ट्रेन देना जिससे दिल्ली के लिए रोज गाड़ी मिलती रहे। इनमें 2रा और 3रा विकल्प बढ़िया होता। लेकिन रेलवे बोर्ड ने पहले विकल्प को माना । क्योंकि साधारण ट्रेन चलाने के प्रति रेलवे जिस तरह उदासीन है उस अनुसार ट्रेन को विस्तारित करना ही उसे अच्छा लगा जिसमें बिना अतिरिक्त खर्च के ट्रेन मिल गई। लेकिन tt बढ़िया से नहीं बनाया। बरौनी में ही आधे घंटे का ठहराव देता। और सहरसा से बरौनी 2 घंटे समय देता तो असल में ये वैशाली कहलाती। लेकिन अफसोस ऐसा नहीं किया गया।